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जहाँ लड़कियों के गुप्तांगो के साथ किया जाता है खिलवाड ! खतना – अमानवीय कृत्य ! Posted: 31 Jan 2012 06:54 AM PST रिवाज और प्रथाओं के नाम पर अमानवीयता तो आये दिन सामने आती ही रहती है. परन्तु यह करतूत आपको हैरत में डाल देगी. ” खतना ” नाम की यह प्रथा अत्यंत क्रूर और अमानवीय ही नहीं वरन उस समाज और देश के कानून और संविधान की भी खिल्ली उडाता नज़र आता है. महज पांच से -आठ वर्ष की छोटी बच्चिओं के गुप्तांगो की सुन्नत की यह प्रथा बोहरा मुस्लिम समुदाय के औरतों के लिये अभिशाप बन चूकी हैं. बोहरा मुस्लिम समुदाय में जारी इस क्रूर प्रथा के खिलाफ कई अन्तराष्ट्रीय संगठनो के अलावा डॉक्टर्स, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO ) भी अपनी कयवाद में जुटा है. क्या है यह खतना ?दावूदी बोहरा मुस्लिम समाज में छोटी बच्चिओं के गुप्तांगों के भग्न-शिश्न (क्लिटोरिस) को अमानवीय तरीके से बिना किसी एनेस्थिसिया (बेहोस करने की दवा ) के काट कर हटा दिया जाता है. इसे हटाने के लिये साधारण ब्लेड अथवा विशेष प्रकार के चाकू को प्रयोग में लाया जाता है. भग्न-शिश्न के कटते ही , भारी मात्र में खून का रिसाव होने लगता है. ज्ञात हो कि क्लिटोरिस सेक्स प्रक्रिया में उत्तेजित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. क्लिटोरिस जो रक्त बहाव के नस का आखिरी सिरा होता है , के कट जाने से लड़किया चरमोत्कर्ष के लिये कठिनाई महसूस करती हैं. इसके कट जाने से औरत के सेक्स प्रकृति में गिरावट आ जाती है. भग्न-शिश्न को काटने के बाद, हो रहे खून के रिसाव को रोकने के लिये स्थानीय दवा , जिसे “अबीर” कहा जाता है , का इस्तेमाल किया जाता है. यह ठंढ पहुचाकर रक्त-रिसाव को रोकने में मदद करता है. Female circumcision, now widely referred to as female genital mutilation (FGM) कौन करता है यह खतना ?खतना की प्रक्रिया चुनिन्दा बुजुर्ग मुस्लिम महिलाओं द्वारा बिना किसी विशेष उपकरण और डाक्टरी मदद के की जाती है. साधारण रेज़र की सहायता से लड़किओं के भग्न-शिश्न को काट कर अलग कर दिया जाता है. इस प्रथा को लेकर मुस्लिम समाज में निषेधात्मक चुप्पी को लेकर पुरे प्रक्रिया को लेकर ज्यादा जानकारी सामने नहीं आ पाई है. हालाँकि मुस्लिम समुदाय में ”सुन्नत ” (लड़कों के लिंग के उपरी चमड़े को काट कर अलग करने की प्रथा ) आम बात है , और इसे पुरे सामाजिक -भागीदारी के साथ मनाया जाता है. परन्तु खतना एक सीमित मुस्लिम समुदाय द्वारा ही अपनाया जाता है. कौन है यह लोग -बोहरा मुस्लिम- जो करते हैं यह अमानवीय कृत्य ?बोहरा मुस्लिम समुदाय की भारत में सीमित ही पाया जाता है. दावूदी बोहरा मुस्लिम समुदाय शिया मुसलमान होते हैं. इनकी उत्पति EGYPT और उसके आस-पास का क्षेत्र बताया जाता है. भारत में यह महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में पाए जाते हैं. इनकी कुल आबादी लगभग १० लाख है. इनमे से अधिकांस बड़े व्यापारी और शिक्षित होते हैं. पूरा बोहरा समुदाय सयेदना ( Syedna) के अधीन हो कार्य करता है. जो कोई Syedna के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिमाकत करता है उसे समुदाय से बहार निकाल दिया जाता है. क्या कुरआन देता है इस बात की आज़ादी ?जानकारों का मानना है कि कुअरान में इस प्रकार के प्रथा का कोई ज़िक्र नहीं है. परन्तु इसे धर्म और समुदाय को विशिष्ट बनाने के लिये उक्त समुदाय में स्वीकार किया जा चुका है. हालाँकि बोहरा समुदाय की औरतों का विरोध खुल कर सामने आ रहा है. ऐसे में सवाल प्रसाशन और कानून व्यवस्था पर भी खड़े होते हैं. क्या धर्म के नाम पर कानून की खिल्ली ऐसा ही उड़ाई जाती रहेगी ? बात 53 वर्ष पहले की है , जब जैनब बानो को खतना से गुजरना पड़ा. प्रोफ. जैनब बानो, जो उदयपुर विश्वविश्यालय की सेवा-निवृत प्रोफेसर है, उस दिन को याद कर सिहर उठती हैं. ” इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती , मैंने एक औरत को अपने अंडरगारमेंट्स को उतारते हुए पाया. वह मेरे अंडरगारमेंट को खोल रही थी. मुझे यह अंदेशा नहीं था कि मेरे साथ क्या होने वाला है. मुझे बहुत दर्द हुआ और मैं रो पड़ी. मेरे योनी से खून रिस रहा था और घाव खुला पड़ा था “. भारत में अधिकांस बोहरा लड़कियां आज भी इस दर्द से गुजरती हैं. बानो के साथ जो भी हुआ उसकी चर्चा घर में फिर नहीं हुई. “जब भी मैं अपने माँ से पूछती तो वह कहती कि कुछ नहीं हुआ , यह सभी के साथ होता है और बात को ताल देती थी. “ तस्लीम ने उठाई है आवाज़ , इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ ?मुंबई की रहने वाली तस्लीम ( जो अपना सरनेम बताने को तैयार नहीं है ) ने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठायी है. तमाम सामाजिक विरोधों के बावजूद तस्लीम ने इस शर्मनाक प्रथा को जब्त मुस्लिम समाज से बाहर लाकर सामाजिक न्याय की कसौटी पर ललकारा है . उन्होंने बोहरा समाज के मान्य मौलाना मोहम्मद बुन्हारुद्दीन के सुपुर्द करने हेतु एक ऑनलाइन पेटिशन दाखिल करने का मंच बनाया है. यह पेटिशन मौलाना को सौंप कर इस कुप्रथा को खत्म करने की गुहार करेंगे. ऑनलाइन पेटिशन के लिंक देखने के लिये क्लिक करें प्रतिष्ठित वेबसाईट इन्डियन मुस्लिम ऑब्जर्वर द्वारा इस मुद्दे को गंभीरता से लेने के बाद कई दैनिक अखबारों और अन्तराष्ट्रीय मीडिया में इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है, कि आखिर किस सभ्य समाज में इस अमानवीय कृत्य को जगह दी जा सकती है. सुन्नत को एक तरह से स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अगर जायज मान भी लिया जाये , तो खतना को किसी भी आधार पर आधुनिक समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता. तस्लीम, हालाँकि इस मुआमले में किस्मत वाली थी कि उनके माँ -पिता नें उन्हें इस अत्याचार से बचाये रखा. आज काफी कम बोहरा ने इस पेटिशन पर साइन किये हैं. परन्तु यह मुहीम जोर पकडती नज़र आ रही है. ज्यादार लोग या तो गैर-बोहरा मुस्लिम समाज से हैं या हिंदू हैं. यह एक बड़ी चुनौती है . क्योंकि बोहरा समाज की पढ़ी लिखी महिलियें भी इस प्रथा के विरोध में नहीं दिखतीं.भले ही एक लड़की को पढ़ने के लिये दुबई के एक अंतराष्ट्रीय स्कूल में भेजा गया है , पर उसे बॉम्बे बुलाकर खतना करा दिया जाता है. असगर अली , जो पेशे से इंजीनियर है, का कहना है – खतना का इस्लाम से कुछ लेना-देना नहीं है. कुरान भी इसका ज़िक्र नहीं करता है. हालाँकि हदीथ में इसका जिक्र है , जिसका पीछे लड़किओं के काम-इच्छा को शिथिल कर उनपर लगाम रखने के लिहाज़ से जरूरी माना गया है. हालाँकि यह भी विवाद का विषय है. बोहरा समाज क्यूँ करता है खतना ?किसी भी समाज और धर्म में लिखे गए धर्म-ग्रन्थ अथवा नियमवली काल -स्थान -और समय विशेष में आवश्यक और सत्य होती है . परन्तु कालांतर में उसे धर्म और आचरण से जोड़कर कुरीति बना दिया जाता है. बोहरा समाज एक व्यापारी समाज होता है. प्राचीन समय में बोहरा मर्द , व्यापर के उद्देश्य से दूरस्थ क्षेत्रों में लंबे समय के लिये जाया करते थे. ऐसे में औरतों के काम-इच्छा को शांत रखने के लिये खतना की प्रक्रिया अपनाई गयी . ताकि लंबे समय मर्द के संसर्ग में नहीं आने पर भी लड़किया अपने को नियंत्रित रख सकें . परन्तु आज यह प्रथा बेवजह धर्म की आड़ में लाखों औरतों के मानवीय अधिकारों का हनन कर रही है. यह न सिफ इस्लाम के खिलाफ है , वरन इस प्रथा के भारी दुष्परिणाम भी सामने हैं. लड़किया नहीं पहुँच पाती चरमोत्कर्ष तक , अधूरी रह जाती और काम-इच्छा !यह लड़किओं के औरत होने के अधिकार के खिलाफ है . न तो वह सेक्स आ सुख ले सकती हैं और न ही उनकी काम-तृप्ति हो पाती है. इसके अलावा खतना के दौरान किसी भी तरह की अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में सवाल उठता है , कि क्या मुस्लिम समुदाय अपने ही कौम की एक बिरादरी में हो रहे इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की साहस कर सकता है ? क्या भारत जैसे देश में , किसी समुदाय विशेष को धर्म की आड़ में अबोध बच्चों के साथ ऐसा अमानवीय कृत्या करना जायज है ? क्या सरकार और संविधान किसी पशु-संस्कृति के सामने लाचार है?भारत सरकार को तुरंत इस प्रथा पर रोक लगते हुए , इसे गैर-कानूनी घोषित कर देना चाहिए. साथ ही इस व्यवस्था को बढ़ावा और प्रश्रय देने वाले मुस्लिम आकाओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए.आप भी इस ऑनलाइन पेटिशन को भर कर अपनी आवाज इस प्रथा के खिलाफ उठा सकते हैं . पेटिशन पर जाने के लिये क्लिक करें . |
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